रविवार, 26 दिसंबर 2010

असंतुष्टि



वृक्ष बता मैं तुझसा किस तरह बनूँ
तू दृढ खड़ा
गगन को निहारता
अपनी शाखाओं को लेकर झूमता गाता
मैं इस जीवन को अपने
किस तरह जियूं
वृक्ष बता मैं तुझसा किस तरह बनूँ
पतझड़ आया
तू कितना फूट फूटकर रोया
तेरे आंसू पत्ते बनकर
वसुंधरा पर जो गिरे
वसुंधरा निर्मल हुयी
आए दिन सावन के
सावन आया - तू फिर से
खुशियों से नहला उठा
तेरे गम चले गए
तू फिर से लहलहा उठा
झरोखे से अपने तुझको देख
मैं अचंभित रह गया
तेरे दिन आये खुशियों के - लेकिन
मैं वहीँ रह गया
बता अब ऐसे हाल में
मैं क्या करूं
वृक्ष बता मैं तुझसा किस तरह बनूँ
तेरा समय भी निश्चित है
mera samay bhi निश्चित है
तू झड कर भी बढ़ता रहता है
दुखी होकर भी हँसता रहता है
शाखाएँ तेरी झूल झूल कर
खुशियों का एलान हैं करती
पत्तियां भी झूम झूमकर
सुन्दर मधुर हैं गान करती
अपने इस जीवन में तू
कैसे सुखी है
तुहे देख मेरे मन में
यह ईर्ष्या भी उठी है
शायद main भी वृक्ष होता
अगर में वृक्ष होता - तो
कितना सुखी होता - लेकिन
अपनी अपनी है जिंदगी !
में चाहकर भी आखिर
करूँ तो क्या करूँ -?
वृक्ष बता तुझसा किस तरह बनूँ
्रार्थना है भगवान् से मेरी
अब ये जीवन देना
मुझे नहीं चलायमान नना
मुझे अचल जीवन देना
अब जिज्ञासा और आशा
दिल में क्या करूँ - ?
वृक्ष बता मैं तुझसा किस तरह बनूँ !!!

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010



न रो रे दिल
बस कर
बहुत बेबस हूँ
मैं समझा तो कर
न रो रे
बस कर
ढूंढता ख़ाक में
निसानो को
है करता याद बीते
फसानो को
क्यूँ लेता है
मज़ा तू ज़ख्म को
कुरेदकर
बहुत बेबस हूँ
मैं समझा तो कर
न रो रे दिल
बस कर
बहुत बेबस हूँ मैं
समझा तो कर
न यूं फरियाद कर
मुझसे
भूल जा यार तू
उसे
सता के न ले यूं
मजा
तडपता हूँ मैं - पर
बहुत बेबस हूँ मैं
समझा तो कर
न रो रे दिल
बस कर
बहुत बेबस हूँ मैं
समझा तो कर
रहरहकर
हिचकी और सिसक
वो सिहरन और फिर कसक
नहीं और अब नहीं
न अब तू और
याद कर
न मर जाऊं इश बेबसी पर
न रो रे दिल
बस कर
बहुत बेबस हूँ
मैं समझा तो कर

रविवार, 14 दिसंबर 2008

वही तट


गोद में तुम हो गगन में चाँदनी है काल को भी यह निशा तो मापनी है
है रुपहली रात है सपने सुनहले और तुम साथ पर हम है अकेले
ठहर जा निशा - फ़िर
पल ये आए न आए
प्रियाशी यूँ रूठ कर फ़िर
न आज भी चली जाए
मैं अकेला आज भी तुमको निहारूं
और तारों से कहकर ये पुकारूँ
दिल के अंगारों को आग कर दो मुझको सुलगा कर तुम राख कर दो
न है - प्यार न प्रियतमा अब
न तमन्ना न ही कोई आरजू अब
जब नही प्रिया है मेरी फ़िर क्यूँ मैं हूँ -?
क्या देखने, शायद प्रिया को आखरी तक ?
अब तो मेरा रूबरू भी आखरी है
पढ़ लिया मैंने भी दिल को आखरी तक
अब न हैं वो न उनकी आँखों में पानी
न गोद है न गगन में वो चाँदनी
है निशा भी अमावाश की जैसी बन के काली
रहते थे बैठे जिश तट पर हम अकेले
उस तट की हर दिशा भी है अब खाली है अब खाली है अब खाली

शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

अबोली - ३



गए
दिनों की याद

इतनी बोझिल तो नहीं
तो - क्यूँ भुला दूँ तुमहें!!!
जो मेरा अतीत
तुमने जानना चाहा
वर्तमान क्यूँ पूछते हो
जब मुझे याद रखना नहीं , तो
मुझे क्यूँ सोचते हो - और
कहते हो -
भुला दूँ तुम्हें
क्यूँ भुला दूँ तुम्हें ?

गए दिनों की याद
इतनी बोझिल तो नहीं!!!!
नैन भर देखने को
तरसती आँखें
तुमहें है याद करती ;
तुम्हें हैं याद करती - पथराई मेरी आँखें
और मिलती है - पहुँचने को
पथरीली राहें
इनसे डरती हो - क्यूँ-?
क्यूँ रटती हो !
भुला दो हमें भुला दो हमें|
गए दिनों की याद
इतनी बोझिल तो नहीं
की भुला दूँ तुम्हें !!!!
तुम मुझे चाहो गम नहीं ,
मैं चाहता हूँ तुम्हें, कुछ कम नहीं ;
जिंदगी गुजर जायेगी
तुम्हारी भूली बिसरी यादों में .......
मेरी ऑंखें नम हो जाती हैं ,
तुम्हारी बिन बीती बातों में ,
अब ये कहना
--भुला दो हमें--
गए दिनों की याद
इतनी बोझिल तो नहीं
की
भुला दूँ तुम्हें !!!!
तुम्हारे पास ढेरों
खुशियाँ हैं
मेरे पास क्या है - ?
सिवा तुम्हारी यादों के
जिन्दा भी हूँ तो
तुम्हारी यादों पर
कभी इक धुन बजाकर
तुमको याद करता हूँ
झूठी हँसी दिखाकर ख़ुद को हंसाया करता हूँ
वरना मर गया होता
उशी पल जब तुम - कह गयी थी
भुला दो हमें |

पर मेरी अबोली
क्या तू भूल पायेगी -?
गए दिनों की याद
क्या इतनी बोझिल है -?
नहीं मेरी अनजान अबोली
मई तो मई हूँ
तू भी भूल पायेगी
क्योंकि प्यार प्यार है अबोली
बता तू कब आएगी
मैं इन्तजार में हूँ
तू जब आएगी
........अबोली........

शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

अबोली -२



गोद में तुम हो गगन में चाँदनी है
काल को भी यह निशा तो मापनी है!
है रुपहली रात ; हैं सपने सुनहले-
और तुम हो साथ पर हम हैं अकेले
ठहर जा ऐ निशा - फ़िर
पल ये आए न आए !
प्रियशी यूँ रूठ कर फ़िर
न आज भी चली जाए !
मैं अकेला आज भी तुमको निहारूं
और तारों से कहकर मैं ये पुकारूँ
दिल के अंगारों को और आग कर दो
मुझको सुलगा कर तुम राख कर दो
न है प्यार न प्रियतमा अब
न तम्मन्ना न ही कोई आरजू अब
जब नही प्रिया है मेरी
फ़िर क्यूँ मै हूँ ?
क्या देखने , शायद प्रिया को आखरी तक ?
अब तो मेरा रूबरू भी - आखरी है
पढ़ लिया मैंने भी दिल को आखरी तक
अब ना हैं वो
ना उनकी आंखों में पानी
ना गोद है , न गगन में है चाँदनी
है निशा भी
अमावश की जैसे बनके काली
रहते थे जिस तट पर हम
हमेशा अकेले
उस तट की हर दिशा भी
है अब खाली
तुम कब आओगी अबोली ---?

बुधवार, 23 जुलाई 2008

अबोली


वो तेरा सिमटना सकुचाना कभी हाथों को छूना कभी ठोकर लगा जाना पलकों को झुकाकर

दिल
को छू जाना
बंद
होठो से इकरार कर
मुझको
तडपाना
यही अदा जो मुझे सताएगी;
तुमने दिया नाम ना मैंने पूछा रिश्ता;
लेकिन मै जनता हूँ तू मिल पायेगी;
फ़िर भी तू हर लम्हा याद आयेगी;
मै इन्तजार में हु तेरे;
तू जब आएगी;
कहीं इश आश में;
उमर न गुजर जाए -;
लेकिन प्यार अँधा है;
अबोली बता तू कब आएगी !
तू कब आएगी
मेरी अनजान अबोली;
तू कब आएगी
पलकें बिछाए इन्तजार में;
जिंदगी की लम्बी आग में ;
मै ठहर गया चौराहे पर -
की शायाद तू आए और कहे;
लो मै गई ;
बाता तू कब आएगी ;
मै इन्जार में हु तेरे ;
तू जब आएगी ;
मेरी अनजान अबोली बता तू कब आएगी -?