शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

अबोली - ३



गए
दिनों की याद

इतनी बोझिल तो नहीं
तो - क्यूँ भुला दूँ तुमहें!!!
जो मेरा अतीत
तुमने जानना चाहा
वर्तमान क्यूँ पूछते हो
जब मुझे याद रखना नहीं , तो
मुझे क्यूँ सोचते हो - और
कहते हो -
भुला दूँ तुम्हें
क्यूँ भुला दूँ तुम्हें ?

गए दिनों की याद
इतनी बोझिल तो नहीं!!!!
नैन भर देखने को
तरसती आँखें
तुमहें है याद करती ;
तुम्हें हैं याद करती - पथराई मेरी आँखें
और मिलती है - पहुँचने को
पथरीली राहें
इनसे डरती हो - क्यूँ-?
क्यूँ रटती हो !
भुला दो हमें भुला दो हमें|
गए दिनों की याद
इतनी बोझिल तो नहीं
की भुला दूँ तुम्हें !!!!
तुम मुझे चाहो गम नहीं ,
मैं चाहता हूँ तुम्हें, कुछ कम नहीं ;
जिंदगी गुजर जायेगी
तुम्हारी भूली बिसरी यादों में .......
मेरी ऑंखें नम हो जाती हैं ,
तुम्हारी बिन बीती बातों में ,
अब ये कहना
--भुला दो हमें--
गए दिनों की याद
इतनी बोझिल तो नहीं
की
भुला दूँ तुम्हें !!!!
तुम्हारे पास ढेरों
खुशियाँ हैं
मेरे पास क्या है - ?
सिवा तुम्हारी यादों के
जिन्दा भी हूँ तो
तुम्हारी यादों पर
कभी इक धुन बजाकर
तुमको याद करता हूँ
झूठी हँसी दिखाकर ख़ुद को हंसाया करता हूँ
वरना मर गया होता
उशी पल जब तुम - कह गयी थी
भुला दो हमें |

पर मेरी अबोली
क्या तू भूल पायेगी -?
गए दिनों की याद
क्या इतनी बोझिल है -?
नहीं मेरी अनजान अबोली
मई तो मई हूँ
तू भी भूल पायेगी
क्योंकि प्यार प्यार है अबोली
बता तू कब आएगी
मैं इन्तजार में हूँ
तू जब आएगी
........अबोली........