रविवार, 14 दिसंबर 2008

वही तट


गोद में तुम हो गगन में चाँदनी है काल को भी यह निशा तो मापनी है
है रुपहली रात है सपने सुनहले और तुम साथ पर हम है अकेले
ठहर जा निशा - फ़िर
पल ये आए न आए
प्रियाशी यूँ रूठ कर फ़िर
न आज भी चली जाए
मैं अकेला आज भी तुमको निहारूं
और तारों से कहकर ये पुकारूँ
दिल के अंगारों को आग कर दो मुझको सुलगा कर तुम राख कर दो
न है - प्यार न प्रियतमा अब
न तमन्ना न ही कोई आरजू अब
जब नही प्रिया है मेरी फ़िर क्यूँ मैं हूँ -?
क्या देखने, शायद प्रिया को आखरी तक ?
अब तो मेरा रूबरू भी आखरी है
पढ़ लिया मैंने भी दिल को आखरी तक
अब न हैं वो न उनकी आँखों में पानी
न गोद है न गगन में वो चाँदनी
है निशा भी अमावाश की जैसी बन के काली
रहते थे बैठे जिश तट पर हम अकेले
उस तट की हर दिशा भी है अब खाली है अब खाली है अब खाली

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