
गोद में तुम हो गगन में चाँदनी है
काल को भी यह निशा तो मापनी है!
है रुपहली रात ; हैं सपने सुनहले-
और तुम हो साथ पर हम हैं अकेले
ठहर जा ऐ निशा - फ़िर
पल ये आए न आए !
प्रियशी यूँ रूठ कर फ़िर
न आज भी चली जाए !
मैं अकेला आज भी तुमको निहारूं
और तारों से कहकर मैं ये पुकारूँ
दिल के अंगारों को और आग कर दो
मुझको सुलगा कर तुम राख कर दो
न है प्यार न प्रियतमा अब
न तम्मन्ना न ही कोई आरजू अब
जब नही प्रिया है मेरी
फ़िर क्यूँ मै हूँ ?
क्या देखने , शायद प्रिया को आखरी तक ?
अब तो मेरा रूबरू भी - आखरी है
पढ़ लिया मैंने भी दिल को आखरी तक
अब ना हैं वो
ना उनकी आंखों में पानी
ना गोद है , न गगन में है चाँदनी
है निशा भी
अमावश की जैसे बनके काली
रहते थे जिस तट पर हम
हमेशा अकेले
उस तट की हर दिशा भी
है अब खाली
तुम कब आओगी अबोली ---?